Saturday, 26 April 2025

कृन्तन krintan definition in music in hindi

 कृन्तन

मिज़राब के एक ही प्रहार से उँगलियों द्वारा बिना मींड लिए दो या दो से ज्यादा स्वर बजाने को कृन्तन कहते है। 

सितार पर ये क्रिया बाएँ हाथ की उंगलियों से पूरी होती है। इसमें दो या तीन उंगलियाँ एक के बाद एक स्वर बजाती हुई कृन्तन बनाती है। जैसे: स पर दूसरी उंगली रख कर तार छेड़ते हुए उसकी आवाज़ कायम रखते हुए तीसरी उंगली नी को छू कर हट जाए तो 'स, रे, स, नी, स' यह स्वर समूह बजाना ही कॄन्तन है। यह क्रिया दूसरे स्वरों पर भी की जा सकती है। 

Friday, 25 April 2025

जमजमा Zamzama in music

 Zamzama जमजमा 

जमजमा भी एक प्रकार की गमक है। जो स्फूरीत गमक के नाम से जानी जाती है। जमजमा तारवाद्य (सितार) तथा बाँसुरी आदि पर विशेष रूप में बनाया जाता है।  

परिभाषा: सितार में स्वरों को एक-साथ या एक-दूसरे के बाद एक ही आघात में जल्दी-2 बजाने से जो एक प्रकार की हिलती हुई आवाज उत्पन्न होती है, उसे जमजमा कहते है।

वादन क्रिया:  जमजमा उत्पन्न करते समय दो उंगलियाँ (दाएँ हाथ की) प्रयोग होती हैं। उनमें से एक उंगली सितार के पर्दे पर स्थित करती। और दूसरी हरकत करती है। उदाहरण के लिए ग,म,ग,स स्वर उत्पन्न करने के लिए पहली उंगली (तर्जनी) को ग के पर्दे पर स्थिर रखेंगे तथा दाएँ हाथ से मिज़राब द्वारा तार पर जोर से आघात करके आवाज को कायम रखते हुए बीच वाली उंगली से 'म' के पर्दे को बार-बार छू कर ग, म, ग, म, ग स्वर उत्पन्न होंगे। इस क्रिया को जमजमा कहते है।

Thursday, 24 April 2025

खटका-मूर्की Khatka Murki

 खटका-मूर्की Khatka-Murki

1. खटका और मूर्की दोनों शब्दों में मतभेद है। अधिकांश विद्वानों द्वारा मान्य इनकी परिभाषा इस प्रकार है –
चार अथवा चार से अधिक स्वरों की एक गोलाई बनाते हुए जैसे: स, रे, नि, स अथवा उसके आगे-पीछे के स्वरो से द्रुत गति में गोलाई बनाते हैं और उसी स्वर पर समाप्त करते हैं जिसे कोष्ठक में बंद किया जाता है। 

2. खटका और मूर्की में केवल स्वरो की संख्या का अंतर होता है। मूर्की में इस तरह लिखते है । जैसे:

मूर्की का प्रयोग टप्पा, ठुमरी, दादरा में होता है। मूर्की प्राचीन स्फुरित गमक में आती है।  

Tuesday, 22 April 2025

मींड Meend Definition in hindi in Music

 मींड 

किन्ही दो स्वरों का इस प्रकार गाने अथवा बजाने को मींड कहते है, जिससे  रिक्त-स्थान ना रहे। दूसरे स्वर में एक स्वर से दूसरे स्वर तक जाने को मींड कहते है। मींड लिखते समय बीच के स्वरो का स्पर्श इस प्रकार होता है कि वे अलग-अलग दिखाई नहीं पड़ते। उदाहरण स से म तक मींड लेते समय बीच के स्वरो का स्पर्श आवश्य होता है। किंतु वे अलग-अलग सुनाई नहीं देते। मींड लिखने के लिए स्वरो के ऊपर उल्टा अर्ध चंद्रकार बनाते है जैसे 

। मींड भारतीय संगीत की विशेषता है। इससे गाने में लोचा और रंजकता आती है। 

Monday, 21 April 2025

Gram ग्राम definition in music

 ग्राम 

ग्राम संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है गाँव। स्वर व श्रुतियाँ के रहने की जगह को ग्राम कहते है। 

संगीत रत्नाकर में पं. शारंगदेव जी लिखते है- ऐसा स्वर समूह जो मूर्च्छनाओं का आधार हो ग्राम कहलाता है।

1. षडज ग्राम: 

इसे षडज ग्राम इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह षडज (स) स्वर से आरंभ होता है। इस ग्राम में स-प, रे-ध, ग-नि, म-स में परस्पर संवाद है। 

2. मध्यम ग्राम: जब न शुद्ध स्वरो को 22 श्रुतियों पर 4-3-2-4-3-4-2 के क्रम से स्थापित किया जाता है तो मध्यम ग्राम की प्राप्ति होती है। मध्यम ग्राम में पंचम की एक श्रुति कम होकर धैवत को मिल जाती है। अतः मध्यम ग्राम में पंचम 3 श्रुतियों का रह जाता है। मध्यम ग्राम की श्रुति स्वर स्थापना —


3. गंधार ग्राम: इसका प्रयोग गंधर्व लोक में किया जाता है। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र (उनकी पुस्तक) में इसके बारे में कुछ नहीं लिखा। यह ग्राम प्राचीनकाल में ही खत्म होने लगा था।

सारांश: आधुनिक 12 स्वरों की प्रणाली में यह व्यवस्था मेल नहीं खाती। अतः आज ग्राम की उपयोगीता खत्म हो गई है।

Sunday, 20 April 2025

Murchhana मूर्च्छना definition in music

मूर्च्छना

मूर्च्छना शब्द मूर्च्छ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘चमकना’ । 

परिभाषा: भरतमुनि और पं. शारंगदेव के अनुसार सात स्वरों के क्रमानुसार आरोह-अवरोह करने को मूर्च्छना कहते है।

मूर्च्छना के प्रकार: ग्राम तीन प्रकार के हैं तथा प्रत्येक ग्राम में सात स्वर होते हैं। अतः 7×3=21 मूर्च्छनाएँ प्राप्त होती है।

1. षडज ग्रामिक मूर्च्छना: यह मूर्च्छना षडज ग्राम के ‘स’ स्वर से आरंभ होती है। बाकी की छह (6) मूर्च्छनाएँ एक-एक स्वर नीचे उतर कर, उसी स्वर को आधार मानकर सात स्वरो का आरोह तथा अवरोह करने से प्राप्त होती है। अतः यह मूर्च्छनाएँ क्रमशः स, रे, ग, म, प, ध, नि स्वरों से आरंभ होती हे।

2. मध्यम ग्राम मूर्च्छना: यह मूर्च्छना मध्यम स्वर से आरंभ की जाती है क्योंकि मध्यम ग्राम में ‘म’ को ‘स’ मानकर गाया जाता है। इस ग्राम की अन्य मूर्च्छनाएँ एक-एक स्वर नीचे उतर कर सात स्वरो का क्रमानुसार आरोह-अवरोह कर के पाई जाती है। मध्यम ग्राम की सात मूर्च्छनाएँ क्रमशः म, ग, रे, स, नि, ध, प स्वर से शुरू की जाती है।

3. गंधार ग्राम की मूर्च्छना: इस ग्राम को स्वर्ग स्थित मानकर किसी भी ग्रंथकार ने वर्णन नहीं किया है। तथापि नाम अवश्य दिए हैं। इस ग्राम की पहली मूर्च्छना ‘नि’ स्वर से आरंभ की जाती है। इसके बाद एक-एक स्वर नीचे उतरते है। 

सारांश: प्राचीन काल में राग गायन की जगह जाति गायन किया जाता था तब ग्राम मूर्च्छना का बड़ा महत्व था। आधुनिक युग में मूर्च्छना का प्रचार बिल्कुल बंद है क्योंकि ‘स’ को ही राग का आधार स्वर माना जाता है लेकिन दक्षिण भारतीय संगीत में आज भी मूर्च्छना प्रयोग होता है। 

Saturday, 19 April 2025

गमक gamak definition in music in hindi

गमक

गाने और बजाने की विशेष क्रिया को गमक कहते है। स्वरो को जब विशेष ढंग से हिलाकर उनमें कंपन पैदा करके गाया जाता है तो उसे गमक कहते है।

गमक द्वारा स्वरो की क्रिया कई प्रकार से की जाती है।
1. किसी एक स्वर का जल्दी-2 कंपन करना। 
2. एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय उसके ऊपर तथा नीचे के स्वर को खींचते हुए जाना। 
3. एक स्वर से दूसरे स्वर पर एक ही बार जाना। 
4. एक स्वर से दूसरे स्वर पर ध्वनि को बिना तोड़े जाना।

कुछ विद्वान गमक के 19 प्रकार मानते है परन्तु प्राचीन ग्रंथों में गमक के 15 प्रकार ही प्राप्त होते हैं। जैसे:-
1. अंदोलित: जब किसी स्वर का कम्पन एक मात्रा काल मे किया जाता है तो उसे अंदोलित कहते है।

2. लीन: जब किसी स्वर का कम्पन मात्रा के 1/2 काल में किया जाता है तो उसे लीन कहते है।

3. प्लावित: जब किसी स्वर का कम्पन मात्रा के 3/4 काल में किया जाता है तो उसे प्लावित कहते है।

4. कंपित: जब किसी स्वर का कम्पन मात्रा के 1/4 काल में किया जाता है तो उसे कंपित कहते है।

5. स्फुरित: जब किसी स्वर का कम्पन मात्रा के 1/6 काल में किया जाता है तो उसे स्फुरित कहते है।

6. आहत: जब मूल स्वर के साथ दूसरे स्वर का हल्का सा स्पर्श किया जाए तो उसे आहत कहते है।

7. उल्लासित: जब स्वरो को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर क्रमबद्ध रूप से हिलाया जाए तो उसे उल्लासित कहते है।

8. नामित: जब स्वरो का कंपन नम्रता से किया जाए तो उसे नामित कहते है।

9. मिश्रित: जब दो से ज्यादा प्रकारो को मिलाकर गाया बजाया जाए तो उसे मिश्रित कहते है।

आधुनिक अर्थ: आधुनिक हिंदुस्तानी संगीत पद्धति में गमक का अर्थ भी बदल चुका है। गमक के प्रयोग मे सावधानी, सूझ-बूझ और अभ्यास की आवश्यकता है। उसका अधिक प्रयोग रस पैदा कर सकता है। गमक हिंदुस्तानी संगीत को पाश्चात्या संगीत से अलग करने वाली रेखा है।

Wednesday, 16 April 2025

कण kan definition in music in hindi

 कण 

किसी स्वर का उच्चारण करते समय उसके आगे या पीछे के स्वर को तनिक छुने या स्पर्श को कण कहते हैं। 

कण स्वर को मूल स्वर के ऊपर लिखते है। इस स्वर का प्रयोग संगीतिक रचनाओं को सजाने और संवारने के लिए होता है।

कण स्वर दो प्रकार के होते है —
1. पूर्वलगन कण  
2. अनुलगन कण

1. पूर्वलगन कण: इस कण स्वर का प्रयोग मूल स्वर से पहले किया जाता है। इसको मूल स्वर की बाईं ओर लिखा जाता है। जैसे: रे ग।

2. अनुलगन कण: इस कण स्वर का प्रयोग मूल स्वर के बाद किया जाता है। इसको मूल स्वर की दाईं ओर लिखा जाता है। जैसे: ग म।

इसके साथ राग में मधुरता आती है। ध्यान रहे, इसे गाने के लिए राग गाने की कुशलता आनी चाहिए नही तो राग बिगड़ जाता है। 

Sunday, 13 April 2025

आलाप Aalaap definition in music

 आलाप 

किसी भी राग का गायन वादन एकदम सीधे शुरू नहीं किया जाता, उसके आलाप से किया जाता है। राग के मुख्य स्वरों का विलम्बित (slow) लय में विस्तार करना आलाप कहलाता है। जिसको वर्ण, गमक, मींड, खटका, मुर्की आदि से सजाया जाता है। 

गायक या वादक आलाप द्वारा स्वरो का स्वरूप प्रस्तुत करता  है और अपने मन की भावनाओं को प्रकट करता है। आलाप भाव प्रधान होता है। गायन में आलाप  दो प्रकार से होता है– पहला आकार से और दूसरा नोम-तोम आदि शब्दों से। 

आलाप मुख्यता दो जगहों पर किया जाता है। एक तो गीत या गत से पहले जो कि ताल रहित होता है। और दूसरा गीत या गत के बीच-बीच में जो कि ताल बद्ध होता है। 

नोम-तोम का आलाप चार भागों स्थाई, अंतरा, संचारी और आभोग में बाँट दिया जाता है। आलाप करने से राग का पूरा माहौल बन जाता है, जिसका आनंद सभी लोग लेते हैं। 

वादक कलाकर पहले आलाप करते है। फिर जोड़ आलाप करते है। जोड़ झाला बजाने के बाद गत शुरू करते है। गायक कलाकार पहले आकार या नोम-तोम में आलाप कर गीत आरंभ करते है, जिससे राग का रस निरंतर बना रहता है।

Friday, 11 April 2025

तान taan definition in music

 तान 

तान का अर्थ है विस्तार करना। इसमे गीत का विस्तार होता है तथा चमत्कार की उपज होती है। किसी राग के स्वरो को द्रुत अर्थात्‌ तेज लय तथा आकार में गाने को तान कहते है।  आलाप की लय धीमी होती है और आलाप भाव प्रधान होते है। तान की द्रुत होती है और कला प्रधान होती है। 

1. जब तान में गीत के बोलो का प्रयोग करते हैं तो उसे बोल तान कहते है। 
2. तान को गाते समय राग के वादी, सम्वादी तथा वर्जित स्वरो का ध्यान रखा जाता है।
3. तानों में लय का महत्व ज्यादा होता है इसलिए छोटे ख़्यालों में या द्रुत गत में बराबर की लय या दुगुन में या बड़े ख्याल में चौगुन या अठगुन में गायक गाने गाते हैं। 

तानों के कई प्रकार प्रचलित हैं जिनमें से प्रमुख हैं —
1. शुद्ध तान: इस तान को ‘सपाट तान’ भी कहते है। जिस तान को राग के आरोह अवरोह में क्रमानुसार गाया जाए उसे शुद्ध तान कहते है। 

2. कूटतान: जिस तान में स्वर क्रमानुसार न होकर टेढ़े-मेढ़े हो उसे कूट तान कहते है।

3. मिश्र तान: जिस तान में शुद्ध और कूट तान मिश्रण हो उसे मिश्र तान कहते है।

4. छूट की तान: जब कोई तान तेज गति से ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर या नीचे से ऊपर गई जाए तो उसे छूट की तान कहते है। 

5. दानेदार तान: जिस तान में कण का प्रयोग होता है। उसे दानेदार तान कहते है।

6. गमक तान: जिस तान में गमक का प्रयोग होता है, उसे गमक की तान कहते है।

7. बोल तान: जिस तान में स्वरों की जगह बंदिश के बोलो का प्रयोग हो उसे बोल तान कहते है।

Tuesday, 8 April 2025

अलंकार Alankar definition in music

 अलंकार 

अलंकार संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है आभूषण या गहना। जिस प्रकार आभूषण या गहनों से हम अपने आप को सजाते है, उसी प्रकार अलंकार से संगीतकार गायन और वादन को सजाते है।

परिभाषा: नियमबद्ध विशेष प्रकार का वह वर्ण समूह जिस में आरोह-अवरोह दोनों हो अलंकार कहलाता है। 

अलंकार के प्रकार: 
1. सरल अलंकार 
2. अर्द्ध जटिल अलंकार
3. जटिल अलंकार

अलंकार के नियम: 
1. सभी अलंकार 'स' स्वर से शुरू होते है।
2. अलंकार में आरोह अवरोह दोनों होते है।
3. अलंकार शुद्ध स्वरों के इलावा विकृत स्वरों के भी बनते है।
4. अलंकार में स्वरो का निश्चित क्रम होता है। 

अलंकारों का महत्व: 
भरत मुनि जी अपने ग्रंथ 'नाट्य शास्त्र' में लिखते है कि अलंकारों के बिना गीत वैसे ही प्रतीत होता है जैसे चंद्रमा के बिना रात, जल के बिना नदी और फूल के बिना लता तथा आभूषण के बिना स्त्री शोभा नहीं देती। उसी प्रकार अलंकारों के बिना गीत भी शोभा नहीं देता। 

अलंकार के अभ्यास से स्वर ज्ञान तथा लय ज्ञान होता है।

Sunday, 6 April 2025

वर्ण varna definition in hindi in music.

 वर्ण

पंडित अहोबल ने “संगीत परिजात” में वर्ण की जो परिभाषा दी है, उसका अर्थ है “गायन की क्रिया का स्वरों के साथ विस्तार करना वर्ण कहलाता है।” उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि गाते या बजाते समय स्वरों के प्रयोग से आवाज को जो चाल मिलती है, उसे ‘वर्ण’ कहते है।

वर्ण के प्रकार: वर्ण चार प्रकार के है –
1. स्थाई वर्ण 
2. आरोही वर्ण 
3. अवरोही वर्ण 
4. संचारी वर्ण 

1. स्थाई वर्ण:- जब एक ही स्वर का बार-बार उच्चारण किया जाता है अर्थात एक ही स्वर पर स्थिर होने को स्थाई वर्ण कहते हैं।  जैसे: स स, रे रे, ग ग आदि।

2. आरोही वर्ण:- नीचे के स्वरों से ऊपर के स्वरों तक जाने की क्रिया को आरोही वर्ण कहते हैं। जैसे: स, रे, ग, म, प।

3. अवरोही वर्ण: ऊपर के स्वरों से नीचे के स्वरों तक आने की क्रिया को अवरोही वर्ण कहते हैं। जैसे: स, नि, ध, प आदि।

4. संचारी वर्ण: स्थाई वर्ण, आरोही वर्ण, अवरोही वर्ण इन तीनो के मिश्रित रूप को संचारी वर्ण कहते है। जैसे: स स, रे रे, स रे ग म, म ग, रे स।

महत्व 
1. वर्ण गायन के सभी प्रकारों में सुंदरता और रंजकता पैदा करता है।
2. वर्ण के द्वारा ही किसी राग का चलन निर्धारित होता है। 
3. कई रागो में अनेक समानताएँ होने के बाद भी वर्ण भेद से एक दूसरे से भिन्न हो जाता है।

Thursday, 3 April 2025

Raag aur thaat me antar

 थाट और राग में अंतर

प्र. राग और थाट की परिभाषा देते हुए अंतर स्पष्ट करें।

थाट: संगीत में नाद से श्रुति, श्रुति से स्वर तथा स्वर से सप्तक की उत्पत्ति मानी गई है। सप्तक के स्वरो मै शुद्ध और विकृत रूपों सहित और जिसमें राग उत्पन्न करने की क्षमता हो उसको थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है।

राग: राग शब्द का अर्थ है आनंद देना। कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात विशिष्ट स्वरो तथा वर्णों की सुंदर ताल बद्ध रचना राग कहलाती है।

थाट और राग में अंतर


थाट राग
(i)

(ii)

(iii)

(iv)

(v)

(vi)

(vii)


(viii)

थाट की उत्पत्ति सप्तक के शुद्ध अथवा विकृत 12 स्वरो से होती है।

थाट में सात स्वर अनिवार्य है।

थाट में स्वरो का क्रमानुसार होना आवश्यक है।

थाट में केवल आरोह की आवश्यकता होती है।

थाट गाया-बजाया नहीं जाता।

थाट में रंजकता की आवश्यकता नहीं होती है।

थाट में सोंदर्य का होना आवश्यक नहीं क्योंकि ये स्थिर स्वर समूह है।

थाट मे उसके अंतर्गत आने वाले किसी प्रसिद्ध को आश्रय राग कहा जाता है।
राग की उत्पत्ति थाट से होती है।

राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर अनिवार्य है।

राग में स्वरो का क्रमानुसार होना आवश्यक नहीं है।

राग में आरोह-अवरोह दोनो का होना आवश्यक है।

राग गाया बजाया जाता है।

राग में रंजकता की आवश्यकता होती है।

राग मे सौंदर्य का होना आवश्यक है।

राग का नाम थाट से लिया गया है।