Saturday, 15 March 2025

vishnu narayana bhatkhande. पंडित विष्णु नारायण भातखंडे

 पंडित विष्णु नारायण भातखंडे

जन्म एवं शिक्षा:- इनका जन्म 10 अगस्त 1860 ईस्वी में हुआ। मुंबई के वालकेश्वर नामक स्थान पर हुआ। बचपन से ही इनको संगीत का बहुत शौक था। यह बांसुरी बहुत अच्छी बजाते थे। इन्होंने सितार बजाना भी सीखा। गायन मे भी आपको बहुत पुरानी बंदिशें याद थी। 

बी.ए.एल.एल.बी. की परीक्षा के बाद आपने कुछ समय तक वकालत की परंतु वकालत मे इनका मन नहीं लगा। उसे छोड़ कर संगीत को समाज में उच्च स्थान दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन ही लगा दिया। इसके लिए इन्होंने पूरे भारत की यात्राएँ की, प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया तथा विद्धवानो से संगीत की चर्चा की। जहाँ जो सामग्री मिली उसे प्राप्त किया। 

संगीत जगत को देन:- 

1. थाट राग पद्धति: आपने दक्षिण में प्रचलित 72 थाटों के आधार पर हिंदुस्तानी पद्धति में सभी रागों को 10 थाटों में बांटा।

2. ग्रंथ: इन्होंने संगीत पर अनेक उपयोगी पुस्तकें लिखी जिनमें से प्रमुख हैं-
(i) क्रमिक पुस्तक मालिका (6 भाग)
(ii) हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति (4 भाग)
(iii) श्री मल्लक्ष्य संगीतम 
(iv) अभिनव राग मंजरी   आदि 
इन्होंने मराठी और अंग्रेजी में अनेक पुस्तकें लिखी। 

3. स्वर लिपि पद्धति: इन्होंने संगीत की एक सर्वमान्य स्वर लिपि बनाई जो भातखंडे स्वर लिपि पद्धति के नाम से प्रचलित है। आपने अपने समय मे प्रचलित बंदिशों को स्वर लिपि बद्ध किया तथा उन्हे ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ के 6 भागो को इकट्ठा किया। इसके लिए आपको चोरी भी करनी पड़ी, छिपना पड़ा तथा अपमानित भी होना पड़ा। क्योंकि घरानेदार उस्ताद अपनी कला को बाहरी व्यक्तियों को नहीं देते थे। 

4. संगीत रचनाएँ: आपने चतुर पंडित के उपनाम से स्वयं ही अनेको बंदिशें रची। 

5. संगीत सम्मेलन: संगीत का जन साधारण में प्रचार करने के लिए इन्होने संगीत सम्मेलन भी करवाये। 

6. संगीत विद्यालय: आपने संगीत विद्यालयों की भी स्थापना की। जिनमें प्रमुख हैं –
(i) माधव संगीत विद्यालय 
(ii) बड़ौदा संगीत विद्यालय 
(iii) मैरिस म्यूजिक कॉलेज, लखनऊ 

7. शिष्य: आपने अनेक योग्य शिष्य भी संगीत जगत को दिए। जिनमे प्रमुख हैं – 
(i) श्री कृष्ण राजन जनकर 
(ii) राजा भैया पूंछवाले
(iii)  श्री रविन्द्र लाल राय आदि 

निधन: लकवा होने के बाद तीन साल तक बिस्तर पर रहने के बाद 10 सितंबर 1936 को आपका देहांत हो गया।  

सारांश: आपने संगीत को समाज में ऊँचा स्थान दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन ही लगा दिया जिसके लिए संगीत जगत आभारी रहेगा। 

Thursday, 13 March 2025

मियाँ तानसेन miyan tansen

 मियाँ तानसेन

भूमिका:- मियाँ तानसेन का नाम संगीत जगत में ही नहीं बल्कि लोक मात्र में संगीत का प्रतीक बन गया है। तानसेन जी के बारे मे अनेक कहानियाँ प्रचलित है। उनके जीवन के बारे में जो एतिहासिक जानकारी मिलती है, वो इस प्रकार है- 

1. जन्म: तानसेन जी का जन्म 1492-93 के बीच में माना गया है। आपका जन्म ग्वालियर के बेहट नामक स्थान पर मकरन्द पांडे के घर हुआ। कई विद्-वानो ने इनका नाम ‘तन्ना मिश्र’ लिखा है।

2. शिक्षा: बचपन से नटखट तन्ना विभिन्न जानवरों की तथा पशु-पक्षियों की आवाजों की हूबहू नकल उतार लेते थे। एक बार स्वामी हरिदास तथा उनके शिष्य टोली जब जंगल से गुजर रही थी तो उन्होंने शेर की दहाड़ निकाल कर उन्हें बुरी तरह से डरा दिया था। स्वामी हरिदास बालक तन्ना की प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें इनके पिता से संगीत सिखाने के लिए मांग लिया। 10 वर्षो तक संगीत की शिक्षा दी।

इसके पश्चात आप ग्वालियर में फकीर ‘मोहम्मद गैस’ के पास रहने लगे जहाँ आपका परिचय राजा मान सिंह विधवा रानी मृगनयनी से हुआ। रानी आपके संगीत से से बहुत प्रभावित थी। उन्होने अपनी प्रिय दासी हुसैनी से तानसेन की शादी करवा दी। 

3. संगीतज्ञ के रूप में: तानसेन रीवा नरेश राजा राम चन्द्र के दरबारी गायक बन गए। राजा की प्रशंसा में आपने अनेक ध्रुपद भी रचे। अकबर के अनुरोध पर राजा राम चन्द्र को इन्हें सम्राट अकबर के दरबार में भेजना पड़ा। अकबर स्वंय एक महान संगीत प्रेमी थे। उन्होंने इन्हें अपने नौ रत्नों में शामिल कर लिया। अकबर के दरबार में रहते हुए तानसेन विश्व के कौने-कौने में प्रसिद्ध हो गए। कहते है के तानसेन के संगीत के प्रभाव से पत्थर पिघल जाते थे, दीपक जल जाते थे तथा पशु-पक्षी भी अपनी सुध-बुध खो देते थे। 

4. संगीत जगत को देन: 
(i) तानसेन जी ने अनेक ध्रुपदों की रचना की और उन्हें गाया भी।  
(ii) तानसेन जी रबाब नामक वाद्य बजाने मे भी कुशल थे। उन्हें भैरव राग में विशेष सिद्धि प्राप्त थी। 
(iii) उन्होंने कई रागो की स्थापना की जैसे:- मिया मल्हार, मिया की तौडी, दरबारी कान्हाडा, मियाँ की सारंग।
(iv) उन्होंने वीणा और सितार के आधार पर सुर बहार नामक वाद्यों की रचना की। 
(v) आपके लिखे ग्रंथ है-
     राग माला, संगीत सार, श्री गणेश स्तोत्र 

 

Tuesday, 11 March 2025

सप्तक Saptak definition in music

 सप्तक 

सात स्वरों के समूह को जब एक क्रम से गाया अथवा बजाया जाता है तो उसे सप्तक कहते है स, रे, ग, म, प, ध और नी। एक सप्तक स से नी तक होता है। नी के बाद जो स आता है, वहाँ से दूसरा सप्तक आरंभ होता है। यह सप्तक पहले सप्तक मे आए स से दुगुना ऊँचा होता है। सप्तक तीन प्रकार होता है -

1. मंद्र सप्तक:- साधारण आवाज से दोगुनी नीची आवाज मे गाया जाए, वह मंद्र सप्तक कहलाता है। इस सप्तक की आवाज नीची और गंभीर होती है। इस आवाज को गाने में हृदय पर जोर पड़ता है। पं. भातखंडे स्वर लिपि पद्धति के अनुसार मंद्र सप्तक के स्वरो को नीच बिंदु लगाया जाता है। जैसे: ग़, म़, प़, ध़, ऩि

2. मध्य सप्तक:- जिस सप्तक के स्वरो की आवाज साधारण बोलचाल जैसी होती है, उसे मध्य सप्तक कहते है। यह आवाज न अधिक नीची और न ही अधिक ऊँची होती है। इस की पहचान के लिए कोई भी चिन्ह का प्रयोग नहीं होता। जैसे: स, रे, ग, म, प, ध, नी

3. तार सप्तक:- मध्य सप्तक से दुगुनी ऊँची आवाज से बजाया जाने वाला सप्तक, तार सप्तक कहलाता है। इस सप्तक के स्वरों को गाने से मष्तिष्क पर जोर पड़ता है। स्वरों की पहचान के लिए स्वरो के ऊपर बिंदी का प्रयोग किया जाता है। जैसे: सं, रें, गं, मं।

Saturday, 8 March 2025

स्वर Swar definition in music

 स्वर 

सप्तक की बाइस (22) श्रुतियों में से चुनी गई सात (7) श्रुतियाँ जो सुनने में मधुर है, जो एक-दूसरे से काफी अंतर पर रखी गई है और किसी राग विशेष में प्रयोग होती है, स्वर कहलाती है। स्वर और श्रुति में इतना ही अंतर है, जितना साँप और उसकी कुण्डली मे।

पं. अहोबल के अनुसार वह आवाज जो अपने-आप ही सुनने वाले के चित्त (मन) को आकर्षित करती है, वे स्वर कहलाती है। 

पं. शारंगदेव के ग्रंथ ‘संगीत रत्नाकर’ में स्वर का भावार्थ यह है कि श्रुति के पश्चात तुरंत उत्पन्न होने नाद (आवाज़) जो सुनने वाले के चित्त को रंजन कर सकता है। वह स्वर कहलाता है। 

स्वर संख्या: हमारे संगीतकारों ने 22 श्रुतियों में से 12 स्वर चुन कर अपना गायन शुरू किया। इन्हीं 12 स्वरो में से सात 7 शुद्ध और पाँच 5 विकृत स्वर माने गये है। 

स्वरों के रूप:
1. शुद्ध स्वर- जब स्वर नियमित स्थान पर स्थित होते है, उनको शुद्ध स्वर कहते है। जैसे: स, रे, ग, म, प, ध, नि। इन सात स्वरों मे से  स, प अचल स्वर है क्योंकि यह अपने स्थान से कभी भी नही हटते। इनके दो रूप नहीं होते। 

2. विकृत स्वर- रे, ग, म, ध, नि ये विकृत स्वर है। ये अपने नियत स्थान से ऊँचे या नीचे किए जा सकते है। 

3. कोमल स्वर- रे, न, ध, नि इन स्वरो के नीचे एक रेका (खींच दी जाती है।) खींची जाती है। ये स्वर अपने नियमित स्थान (से नीचे किए जाते है।) पर प्रयोग किए जाते है।

4. तीव्र स्वर- जब शुद्ध मध्यम स्वर को उसके नियत स्थान से ऊँचा किया जाता है तो तीव्र माध्यम बजता है। इसको पहचानने के लिए म के ऊपर खड़ी रेखा लगा देते है। इस प्रकार सप्तक के कुल 12 स्वर भारतीय संगीत का आधार है।

Friday, 7 March 2025

श्रुति Shruti definition in music

 श्रुति 

श्रुति संस्कृत का शब्द है। ये ‘श्रु’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है सुनना। श्रुति का शाब्दिक अर्थ श्रुयेते + इति =श्रुति अर्थात जो कानों द्वारा साफ सुना जा सके, वे श्रुति है। संगीत में हम हर सुनने वाली आवाज को श्रुति नहीं कह सकते क्योंकि संगीत में हम उसी आवाज की कल्पना कर सकते है जो संगीत उपयोगी है।  
          ‘अभिनव राग मंजरी’ नामक ग्रंथ में श्रुति की जो परिभाषा दी गई है, उसका अर्थ है – ‘जो आवाज गीत में प्रयोग की जा सके और एक-दूसरे से साफ़/अलग और स्पष्ट पहचानी जा सके उसको श्रुति कहते है। 
            श्रुतियाँ भारतीय स्वर सप्तक का मूल आधार है। श्रुतियों के आधार पर स्वरों की स्थापना करने के सिद्धांत को सभी मानते हैं। 

श्रुतियों की संख्या 22 है।  हमारे प्रचीन, मध्य कालीन और आधुनिक ग्रन्थकारो ने 22 श्रुतियाँ मानी है। श्रुतियों के नाम हैं- तीव्रा, रंजनी, दयावती, या, और संदीपन आदि।

अतः हम ये कह सकते है कि श्रुति भारतीय संगीत की आत्मा है।श्रुति के बाद उत्पन्न होने वाला मधुर तथा रंजन करने वाला नाध स्वर कहलाता है। स्वर राग का जनक है और आत्माभि व्यक्ति का साधन है।
            
               

Wednesday, 5 March 2025

Yadi mein pradhanmantri hota essay in hindi

 यदि मैं प्रधानमंत्री होता 

प्रधानमंत्री का पद गरिमा का पद है। राष्ट्र के विकास और सुरक्षा के दायित्व का सर्वोपरि कदम है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो सबसे पहले सैन्य शक्ति को मजबूत करता और नए-नए शास्त्रों का निर्माण करता। मैं असहाय और बेकारो की मदद करता। अशिक्षिता का अंत करता। अहिंसा, शांति-प्रियता और राजनीति से देश को उच्च स्थान दिलवाऊ(ँ)गा। नई शिक्षा नीति रोजगार को प्ररित करेगी। शिक्षा की समाप्ति पर युवक वर्ग को नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। किसी भी युवा को बेकारी का सामना नहीं करना पड़ेगा। मैं अर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कृषि को वैज्ञानिक पद्धति से बढ़ावा दूँगा। नए-नए उपकरणों, उत्तम बीज और अच्छी खाद के लिए कृषि को प्ररित करूँगा। उन्हें आर्थिक सुविधाएँ  दिलवा कर उत्पादन, उपभोग और विनिमय की व्यवस्था को परिवर्तित करूँगा। बैंक प्रणाली ओर विकसित की जाएगी। जगह जगह सहकारी बाजार और सुपर बाजारों को बढ़ावा दूँगा ताकि दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ प्रत्येक व्यक्ति को सुगमता के साथ प्राप्त कर सके। और पैदावार की सही कीमत मिल सके। मैं ऋण की सुविधा  दिलवाऊ(ँ)गा जिससे भ्रस्टाचार पर अंकुश लग सके। मैं प्रेम, भाईचारे, न्याय, और स्नेह से जन-जन का जीवन सुखमय बनाऊँगा। मैं देश के उत्थान के लिए साथ-2 समाज कल्याण की ओर विशेष ध्यान दूँगा। दलित वर्ग, पीड़ित, अपाहिज, असहाय बंधुओं को यथा संभव (सम्भव) सहायता प्रदान की जाएगी। विश्व में देश को ऊँचा  उठाऊंगा। यदि मेरा स्वप्न पूरा हो गया, तो मेरा देश भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा। 
                                     “मेरा भारत महान”

Monday, 3 March 2025

मेरा प्रिय खेल पर निबंध (Essay on my favourite Game in Hindi)

 मेरा प्रिय खेल पर निबंध (Essay on my favourite Game in Hindi)

मेरा प्रिय खेल 

मानव के मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने के लिए जिस प्रकार शिक्षा की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार मनुष्य के शरीर को चुस्त, फुर्तीला तथा स्वस्थ बनाने के लिए खेल अवश्यक होते है। खेल न केवल मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा का साधन है बल्कि उसका भरपूर मनोरंजन भी करते है। खेलों से व्यक्ति में चतुराई, परस्पर सहयोग, सहनशीलता तथा पारस्परिक मुकाबले की भावना आती है। भारत में अनेक खेल खेले जाते है। यद्यपि हॉकी अधिक लोकप्रिय है। मुझ तो क्रिकेट का खेल सबसे अच्छा लगता है। क्रिकेट एक विशाल मैदान मे खेला जाता है, जिसके बीचो-बीच बाईस गज लम्बी पिच होती है। इस टीम में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। दो निर्णायक होते हैं जिन्हें 'अम्पायर' कहते है। मैच के शुरू में टॉस किया जाता है। जिस टीम का कप्तान जीतता है। वह निर्णय लेता है कि उसकी टीम बल्लेबाजी करेगी के गेंदबाजी। आज प्रत्येक विद्यालय, कॉलेज और महाविद्यालय की टीम क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग लेती हैं तथा अच्छे खिलाड़ियों को चुनकर भारतीय टीम में शामिल किया जाता है। भारतीय खिलाड़ियों को चाहिए कि वह दृढ़ संकल्प तथा पूरे आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरे तो निश्चय ही सफलता उनके कदम चूमेगी। जिससे देश का तथा देशवासियों का सम्मान भी बढ़ेगा। अंत में हम यह कह सकते है कि भारत में क्रिकेट का भविष्य उज्जवल है तथा भारत इस खेल के बल पर विश्व मे नाम कमाएगा। 

Sunday, 2 March 2025

romanchak yatra Essay in Hindi

 रोमांचक यात्रा 

यात्रा हमारे मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन है। अपने प्रतिदिन के कार्यों से उबकर हमारी इच्छा किसी स्थान की यात्रा करने की होती है। जिस यात्रा से हमारे अंदर/अन्दर रोमांच पैदा होता है, वह रोमांचक यात्रा बन जाती है। यदि वह यात्रा पर्वतीय स्थान की हो, तो कहना ही क्या। पर्वतीय स्थान की यात्रा बहुत रोमांचक होती है। अम्बाला से वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने के लिए रेल द्वारा जम्मू तक पहुँचा जा सकता है। मेरे पिता जी ने जम्मूतवी एक्सप्रेस के वातानुकूलित कक्ष मे चार टिकट पहले से आरक्षित करवा लिए थे। मेरे माता-पिता, मै, और मेरा भाई रेलवे-स्टेशन पर गए। वहाँ बहुत भीड़ थी। यात्रा के दौरान हमने देखा कि हमारे डिब्बे मे अनेक यात्री वैष्णो देवी की पवित्र एवं धार्मिक यात्रा पर जा रहे थे। हम गाड़ी के डिब्बे मे से प्राकृतिक दृश्यो का आनन्द ले रहे थे। फिर हम सबने खाना खाया। फिर अपनी सीटो पर सौ गए। सुबह होने पर खिङकी से झाँक कर देखा तो चारों ओर सुषमा खिली हुई थी। यह दृश्य देख हम सबका मन रोमांचक से भर गया। जम्मू पहुंच कर हम सबने विश्राम किया।

Thursday, 27 February 2025

Mere Jeevan Ka Lakshya Essay in Hindi: ‘मेरे जीवन का लक्ष्य’ पर निबंध

 मेरे जीवन का लक्ष्य ।। Essay on Mere Jeevan Ka Lakshya Essay in Hindi: ‘मेरे जीवन का लक्ष्य’ पर निबंध

मेरे जीवन का लक्ष्य 
पूर्व चलने की बटोही,
बाट की पहचान कर लो
जीवन एक यात्रा  है। इस यात्रा मे हर यात्री मार्ग निश्चित कर के अपने-अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है। किसी का लक्ष्य है इंजीनियर बनना, किसी का डॉक्टर, किसी का अध्यापक, किसी का नेता और किसी का अभिनेता। मै भी चाहता हूँ की मैं अभी से अपना लक्ष्य निर्धारित कर लूँ और उसी लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर संघर्ष करूँ। मै जानता हूँ कि लक्ष्यहीन जीवन उस नाव की तरह है, जो समुद्र के थपेङो से टकरा कर भँवर मे डूब जाती है। अतः मैने तो अभी से ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। मै चाहता हूँ कि मै एक चिकित्सक बनूँ। देश तथा समाज की सेवा करूँ। कोई चिकित्सक जब गरीब को सांत्वना दे कर उचित परामर्श (सलाह) दे कर उसे नवजीवन प्रदान करता है, तो मेरी भी इच्छा होती है - कारा मैं भी चिकित्सक होता और देश के दरिद्र नारायण की सेवा कर सकता। अभी तो मैं अपने लक्ष्य की निचली सीढ़ी पर हूँ। परन्तु मै निरंतर प्रयत्नशील हूँ कि मै अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे सफल हो सकूँ। इसके लिए मुझे जी तोड़ परिश्रम करके अच्छे अंक प्राप्त करने होंगे। तभी मेरी साधना पूरी होगी। मै केवल जनता की चिकित्सा ही नही करूंगा वरण उनके पोषण तथा परिवार कल्याण के विषय मे भी उन्हे जागृत करूंगा। मै अपने आचरण मे गुणो का विकास करूँगा, जो एक सफल चिकित्सक मे होने चाहिए। मै सहानुभूति, सहनशीलता, विनम्रता, परोपकार आदि गुणो को अभी से अपनाने का प्रयास करूँगा। मुझे विश्‍वास है कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे अवश्य सफल हो जाऊँगा। मानवता की सेवा करना ही मेरा परम कर्तव्य होगा। तभी मेरा जीवन का लक्ष्य सार्थक होगा।

Monday, 24 February 2025

Essay on Vyayam ke labh in Hindi

 व्यायाम के लाभ||Essay on Vyayam ke labh in Hindi

कहा जाता है कि इसमें ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।’ सत्य ही है यदि शरीर स्वस्थ है तो मन भी प्रसन्न रहता है। हर कार्य स्फूर्ति और लगन से करने के लिए हम। तत्पर रहते हैं। बीमार व्यक्ति सदा तक तक सा रहता है। और वह जीवन के आनन्द से वंचित रह जाता है। अतः ठीक ही कहते है कि जान है तो जहान है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नित्य व्यायाम करना बहुत आवश्यक है। व्यक्ति चाहे कितना भी पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन क्यों न खाए जब तक वह खेले कूदे नही या व्यायाम न करे, तब तक शक्ति संवर्धन नही कर सकता । व्यायाम से मांसपेशियाँ मजबूत होती है। रक्त का प्रवाह तेज होता है, पाचन शक्ति ठीक रहती है, अस्थियां मजबूत होती है। पसीना आने से अन्नावश्यक पदार्थ शरीर से बाहर आते है, त्वचा स्वस्थ बनती है, भूख बढ़ती है तथा शरीर मे स्फूर्ति बनी रहती है। व्यायाम से शरीर ही नही मन भी पवित्र और शुद्ध बनता है। महात्मा गांधी नियमित व्यायाम पर बल देते थे। व्यायाम करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को नियमित व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने वाले व्यक्ति को किसी भी बीमारी का शिकार नहीं बनना पड़ता। व्यायाम के अनेक लोगों को देखकर कहा गया है –
                                            नेम से व्यायाम नित कीजिए 
                                            जीवन का सुधा रस पीजिए 

Sunday, 23 February 2025

Essay On Swadesh Prem in Hindi

 स्वदेश प्रेम || Essay On Swadesh
Prem in Hindi

स्वदेश प्रेम का अर्थ है अपने देश से प्यार अथवा अपने देश के प्रति: श्रद्धा । जो मनुष्य जिस देश मैं पैदा होता है, उसका अन्न-जल खा पी कर बड़ा होता है, वही पढ़ लिख कर विद्ववान बनता है, वही उसकी जन्मभूमि है । प्रत्येक मनुष्य अपने देश से प्यार करता है । वह कही भी चला जाए, संसार भर की खुशियाँ तथा महलो के बीच मे क्यों न विचरण कर रहा हो, उसे अपना देश की प्रिय लगता है। देशभक्त सदा अपने देश की उन्नति के बारे मे सोचता है। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब देश पर विपत्ति के बादल मंडराए, जब-जब  हमारी आजादी को खतरा रहा, तब-तब हमारे देश भक्तो ने अपनी भक्ति भावना दिखाई।  सच्चे देश भक्त अपने सिर पर लाठियाँ खाते है, जेलो मे भी जाते है और हंसते-हंसते फांसी के फंदे चूम उठते है।

महात्मा गाँधी, जवाहर लाल, सुभाष चंद्र, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, चन्द्रशेखर आदि देश भक्तो ने आजादी प्राप्त करने के लिए सच्चा देश भक्त दिखलाया । वे देश के लिए मर मिटे पर शत्रु के आगे झुके नही । उन्होने यह निश्चय किया था कि
                सर कटा देंगे मगर सर झुकाएंगे नहीं।
जो कुछ हमने प्राप्त किया है तथा जो कुछ हम बन पाए है, इन्ही के परिणाम स्वरूप हम स्वतंत्रता मे सांस ले रहे है। इसलिए इन वीरों से प्रेरणा ले कर हम भी निस्वार्थ भाव से अपने देश की सेवा करने का प्रण करना चाहिए तथा अपने देश की रक्षा करनी चाहिए।

Saturday, 22 February 2025

Parents inability to say No

 Q. You are Aniket / Ankita, a student representative in a parents orientation programme. You have to write an article for the school magazine about parents and their inability to say no. They seem to be raising children, who respond greedily to the advertisements aimed right at them. Now psychologists, educators and parents think it is time to stop the madness and start teaching kids values like hard work, contentment, honesty and compassion. Psychologists say that parents who over-indulge their kids set them up to be more vulnerable to future anxiety and depression. Write this article in about 150 - 200 words.

The “Yes” Epidemic: Are We Over-Indulging Our Children?
By: Ankita

As a student representative, I’ve observed a growing trend: the “yes” epidemic. Parents, driven by love and a desire to provide, often struggle to say “no”. This has led to a generation of children bombarded by advertisements, responding with insatiable greed.

The consequences are alarming. Psychologists and educators warn that over-indulgence breeds not happiness, but anxiety and depression. Children raised without boundaries struggle to cope with the realities of life, often feeling entitled and unfulfilled.

It’s time for a change. We must shift our focus from material possessions to core values like hard work, contentment, honesty, and compassion. These are the building blocks of a fulfilling life. Instead of shielding our children from disappointment, we should teach them resilience and the value of earning what they desire.

Let’s replace impulsive purchases with meaningful experiences, and instant gratification with the satisfaction of achieving goals through effort. By teaching our children to appreciate what they have and strive for what truly matters, we empower them to lead happier, more balanced lives.

Monday, 17 February 2025

Growing distance in relations in world

 Q. You are Mansi/Manas. Many of your friends flaunt latest gadgets gifted by their parents on their birthdays or various other occasions. On asking further you come to know that they hardly spend any quality time together. Write an article in 150-200 words for your school magazine regarding the growing distance in relations in this modern world.

The Glitch in our Connections
By Mansi/Manas

Our world is increasingly adorned with the latest gadgets. Birthdays and celebrations often involve the unveiling of a new phone, a sleek laptop, or the trendiest smart watch. While these devices are undoubtedly useful, I’ve noticed a concerning trend. Many of my friends, while thrilled with their new acquisitions, admit to spending less and less time with their families. The shiny new gadget becomes a substitute for shared experiences, conversations, and genuine connection.

It’s as if the digital world is creating a growing distance in our real-life relationships. Families are physically present, yet mentally miles apart, engrossed in their individual screens. Dinner tables are silent, replaced by the glow of phones. Weekends are spent indoors, glued to games or social media, instead of creating lasting memories together.

This isn’t a condemnation of technology. Rather, it’s a plea for balance. Let’s not allow gadgets to replace the warmth of human interaction. Let’s prioritize quality time with loved ones, fostering deeper connections and cherishing the moments that truly matter. Let’s remember that the best gifts aren’t material possessions, but rather the gift of time and togetherness.