Friday, 2 May 2025

संगीत पारिजात Sangeet Parijat

 संगीत परिजात Sangeet Parijat 

‘संगीत परिजात’ ग्रंथ 1650 पंडित अहोबल जी द्+वारा लिखा गया जिसका अनुवाद फारसी में पं. दीनानाथ ने 1924 में किया। यह ग्रंथ 17वीं शताब्दी का महान ग्रंथ माना जाता है। पंडित अहोबल जी पहले संगीतकार थे जिन्होंने संगीत परिजात में वर्ण पर स्वर स्थापना निश्-चित करने के लिए एक नई पद्धति बनाई। 

ग्रंथ मंगला चरण से शुरू होता है। इसमे कुल 8 अध्याय हैं:- स्वर, ग्राम, मूर्च्छना, स्वर विस्तार, वर्ण, जाति, समय और राग प्रकरण। संगीत परिजात में कुल 500 श्लोक हैं। 8 अध्याय इस प्रकार है:

1. स्वर अध्याय- इस अध्याय में नाद की उत्पत्ति और उसके दो भेदों के बारे में बताया है। स्वर और श्रुति में स्वर को साँप और उसकी कुंडली को श्रुति बताया गया है। 22 श्रुतियों को 5 भागो में बाँटा  गया है। स्वरों, रागो और रसों के बारे में बताया गया है।

2. ग्राम अध्याय: पंडित अहोबल जी ने अपने ग्रंथ में लिखा है- स्वरो का समूह ही ग्राम कहलाता है। यह मूर्च्छना का आधार होता है। उन्होंने 3 ग्राम बताए है:-
i) षड्ज ग्राम 
ii) मध्यम ग्राम 
iii) गन्धार ग्राम 
षड्ज ग्राम को सबसे उत्तम माना है। राग दो ग्रामों पर षड्ज और मध्यम पर आश्रित है। गन्धार के बारे में वह स्वर्ग लोक में ग्राम होता है।

3. मूर्च्छना अध्याय: मूर्च्छना के बारे में पंडित अहोबल जो लिखते है जब ग्राम के स्वरों में आरोह-अवरोह किया जाए तो उसे मूर्च्छना कहते है। मूर्च्छना ग्राम पर आधारित है। उस समय ग्राम ही प्रचार में थे। हर  ग्राम की सात-सात मूर्च्छनाएँ होती है।

4. स्वर विस्तार अध्याय: इस अध्याय में स्वर की परिभाषा इस प्रकार लिखते है "जो अपने आप ही सुनने वाले के चित्त को आकर्षित करते हैं, वे स्वर कहलाते है।" पंडित जी स्वर के दो भेद मानते हैं:- शुद्ध और विकृत। रागों में प्रत्यक्ष रूप से 12 विकृत स्वर माने है।

5. जाति अध्याय: इस अध्याय में सात शुद्ध जातियाँ षडजा, गन्धारी, मध्यमा, पंचम, धैवती, निषादी का परिचय दिया गया है। इसमे गमक के बारे में भी बताया/समझाया गया है।

6. समय अध्याय: इस अध्याय में पंडित जी ने वीणा पर स्वरों की स्थापना के बारे में बताया है। पंडित जी ने अपने समय के लोकप्रिय रागों के गायन का समय भी लिखा है जैसे रागतोड़ी का गायन समय दिन का पहला प्रहार है। भैरवी राग हर समय गाया जा सकता है। 

7. राग अध्याय: इस अध्याय में लिखते है कि राग तो बहुत से गाए हैं पर मैंने 125 रागो का वर्णन किया है। आपने वादी, सम्वादी, अनुवादी और विवादी स्वरों की भी परिभाषा दी है। वे आधुनिक परिभाषा के समान है।

8. वर्ण अध्याय: इस अध्याय में पंडित जी कहते है कि गायन की क्रिया को वर्ण कहते है। यह 4 प्रकार के है: स्थाई, आरोही, अवरोही, संचारी।
अलंकार के बारे में भी वर्णन किया है। इन्हीं अलंकारों से राग सजाए जाते है। 

सारांश: ये ग्रंथ आधुनिक संगीत से बहुत संबंध रखता है इसलिए पंडित जी को इस अनमोल भेंट को संगीत जगत कभी भी भूला नहीं सकता।

No comments:

Post a Comment

The social strata are changing and the gap between the rich and the poor is becoming wider, the rich are becoming richer and the poor are becoming poorer. What do you think are the causes of this problem and suggest solutions to tackle it.

 Q. The social strata are changing and the gap between the rich and the poor is becoming wider, the rich are becoming richer and the poor ar...